गजब : डीजीजीआई ने 177 करोड़ की नकदी को मान लिया टर्नओवर, मिला पीयूष को लाभ
- करीब दो सौ करोड़ रुपये की नकदी हुई है बरामद
- बंडल के नोट गिनने को बुलानी पड़ी मशीनें
- पुष्पराज के इर्दगिर्द बुना जाता रहा तानाबाना
- बड़ी रकम बरामदी ने राजनीति में भी लाया भूचाल
- सपा व भाजपा लगा रहे हैं एकदूसरे पर आरोप प्रत्यारोप
- अखिलेश ने कहा भाजपाइयों का है यह पैसा
- भाजपा ने कहा सपा का है यह पैसा
इत्र कारोबारी पीयूष जैन के आवास से बरामद 177.45 करोड़ की जो नकदी कई दिनों तक चर्चा में रही और देश की राजनीति में जिसने उबाल लाकर रख दिया उसे अब बैकफुट पर आते हुए डीजीजीआई (महानिदेशालय जीएसटी इंटेलीजेंस) अहमदाबाद ने टर्नओवर की रकम मान लिया है। डीजीजीआई की ओर से कोर्ट में दाखिल दस्तावेजों से इसकी पुष्टि हुई है। समझा जा सकता है कि विभाग ने जानबूझकर इस केस को कमजोर कर दिया है। ऐसा क्यों किया गया होगा..इसे लेकर बस कयास ही लगाये जा रहे हैं। इस संपूर्ण घटनाक्रम का एक गंभीर पहलू यह भी है कि शुरूआती पलों में ही यह साफ हो गया था कि यह छापा सपा के करीबी पुष्पराज जैन के आवास पर नहीं बल्कि पीय़ूष जैन के घर पड़ा है और करोड़ों की नकदी बरामद हुई है लेकिन जब तक संभव हुआ मीडिया के एक बड़े वर्ग ने इसे न सिर्फ छिपाये रखा बल्कि सारा तानाबाना सपा के इर्दगिर्द की केंद्रित रखा। तभी एक साक्षात्कार में अखिलेश यादव ने कह भी दिया कि कहो चाहे कुछ भी, अंत में यह पैसा भाजपाइयों का ही निकलेगा। उधर इसके जवाब में पहले योगी, फिर अमित शाह और अंत में प्रधानमंत्री मोदी ने इस धन को सपा से जुड़ा होना साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कारण साफ है, प्रदेश में चुनाव होने हैं और हर कोई लाभ की गंगा में डुबकी लगाने को आतुर है।
दरअसल, 22 दिसंबर को डीजीजीआई अहमदाबाद की टीम ने शिखर पान मसाला, ट्रांसपोर्टर प्रवीण जैन और फिर इत्र कारोबारी पीयूष जैन के ठिकानों पर छापा मारा था। तर्क यह दिया गया कि शिखर पान मसाला के मालिक ने इत्र कारोबारी की कंपनी से बिना बिल के बड़े पैमाने पर कंपाउंड खरीदा था। गुजरात में पकड़े गए चार ट्रकों से इसकी पुष्टि हुई। इसके बाद कार्रवाई को अंजाम दिया गया। पीयूष को पहले हिरासत में लिया गया और शुक्रवार रात गिरफ्तारी दिखाई गई थी। पूछताछ में पीयूष जैन ने बताया था कि जो नकदी उसके आनंदपुरी स्थित आवास से मिली है, वह चार-पांच साल में कंपाउंड कारोबार से कमाई गई है। उसने यह भी स्वीकार किया कि 177 करोड़ की नकदी पर उसने कर नहीं अदा किया।
आय किससे और कहां से हुई, इस संबंध में वह कोई दस्तावेज डीजीजीआई के सामने प्रस्तुत नहीं कर सका। बावजूद इसके काबिल अफसरों ने उसके बयान को आधार बनाकर कर चोरी का केस बनाकर कोर्ट में पेश कर दिया। इसमें 31.50 करोड़ टैक्स चोरी की बात कही गई। टैक्स पेनाल्टी और ब्याज मिलाकर यह रकम 52 करोड़ रुपये बैठती है। विशेषज्ञों का मानना है कि 177 करोड़ कैश बरामदगी मामले में डीजीजीआई को केस न बनाकर आयकर को कार्रवाई करने और सीज करने के लिए बुलाना चाहिए था। इससे यह काली कमाई का मामला बनता और पूरी रकम पर टैक्स, पेनाल्टी और ब्याज लगता, जो सौ करोड़ से ज्यादा का होता। डीजीजीआई की चूक ने केस को बहुत कमजोर कर दिया है। डीजीजीआई ने पीयूष का ट्रांजिट रिमांड भी नहीं मांगा। ऐसे में पीयूष आसानी से बाहर आ सकता है। वहीं इस मामले में शिखर पान मसाला पर केवल 3.09 करोड़ की कर चोरी का ही मामला बनाया गया है। इसकी देनदारी स्वीकार करके भुगतान भी कर दिया गया है।
डीजीजीआई की अब तक की जांच में पीयूष जैन का इत्र कारोबारी और सपा एमएलसी पुष्पराज जैन उर्फ पम्पी से कोई संबंध सामने नहीं आया है। दोनों एक ही कारोबार में हैं जरूर, लेकिन अलग-अलग काम करते हैं। पम्पी जैन का कारोबार देश के अलग-अलग हिस्सों में फैला हुआ है।