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भाजपा की हिंदुत्ववादी लहर के बीच आयेगा गठबंधन ? लहर न हो जाये प्रभावित

Feb 10, 2022
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उत्तर प्रदेश में पहले चरण की 58 विधानसभा सीटों पर आज सुबह छह बजे से मतदान शुरू हो गया। ये वे सीटे हैं जहां 2017 में हुए चुनाव में भाजपा की लहर थी। भाजपा ने 53 सीट जीत तक सपा, बसपा, कांग्रेस व रालोद को पूरी तरह से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। यह वह वक्त था जब प्रदेश और देश में भाजपा की लहर चल रही थी, अब लहर है लेकिन कई ऐसे मुद्दे अवरोधक बनकर खड़े नजर आ रहे हैं तो भाजपा नेतृत्व की पेशानी पर बल डाले हुए हैं। पश्चिम यूपी की इस जाट बाहुल्य सीटों पर किसान आंदोलन एक बड़ी बाधा बनकर सामने आया है। हाल फिलहाल कुछ विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों पर पथराव, गोबर फेंकने व वाहनों को क्षतिग्रस्त करने की जो घटनाएं हुई हैं, वे इसका उदाहरण हैं। फिर इस बार सपा का रालोद से गठबंधन है। मुस्लिम व जाट का यह समीकरण कहीं भाजपा की हिदुत्ववादी लहर को प्रभावित न कर दे यह आशंका बराबर बनी हुई है।

पहले चरण के 11 जिलों में शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा और आगरा में वोटिंग होगी। इन 11 जिलों में पहले फेज की वोटिंग में 58 विधानसभा सीटों पर कुल 623 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मथुरा और मुजफ्फरनगर दो सीट ऐसी हैं, जहां से सबसे ज्यादा 15-15 प्रत्याशी मैदान में हैं। पहले चरण में मैदान में उतरे 46 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति हैं। प्रत्याशियों की औसतन आय 3.72 करोड़ रुपये है। 156 प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। वहीं शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, अलीगढ़, बुलंदशहर, आगरा और मथुरा की जिन 58 सीटों पर पहले चरण में वोट पड़ने वाले हैं, उनमें से 53 पर 2017 में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। सपा और बसपा के खाते में दो-दो सीटें गईं थी, जबकि एक पर आरएलडी प्रत्याशी की जीत हुई थी, जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे।

हालांकि जिन 53 सीटों पर भाजपा को 2017 में सफलता मिली थी उनमें दस सीटों पर सपा, दस सीटों पर रालोद और 18 सीटों पर बसपा, चार पर कांग्रेस व अन्य दल दूसरे स्थान पर रहे थे। इस बार अगर पश्चिम यूपी में बीजेपी के लिए अन्य दलों से मुकाबला आसान नहीं है। हालांकि पिछले चुनाव में भी जिन सीटों पर बीजेपी हारी थी उनमें से  चार ऐसी सीटें थीं, जहां बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी।

इस बार के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया है। पहले चरण की 58 में से 29 सीटों पर आरएलडी, 28 पर सपा और एक सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ रही है। सपा-आरएलडी ने 58 में से 43 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार बदले हैं। हालांकि उम्मीदवार बदलने की वजह स्थानीय मुद्दों को बताया जा रहा है। इन 43 उम्मीदवारों ने 2017 का विधानसभा चुनाव न तो सपा के टिकट पर लड़ा था और न ही राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर। अनूपशहर विधानसभा सीट एनसीपी को दी गई है, जहां से केके शर्मा चुनाव लड़ रहे हैं।

वैसे सपा-आरएलडी गठबंधन के पास पहले चरण में खोने को बहुत ज्यादा नहीं है और पाने के लिए कई मजबूत दावेदारों वाली सीटें हैं। जानकारों का कहना है कि बीजेपी के सामने जहां 2017 की सीटों को बचाकर रखने की चुनौती है और जिस तरह इस बार चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर मिल रही है, ऐसे में उसको खोने का डर बहुत ज्यादा है।

दरअसल आरएलडी पश्चिमी यूपी में जाटों को सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती है। पश्चिमी यूपी में 17 फीसदी जाटों और गुर्जरों की आबादी 4 फीसदी की है। एक साल तक किसान आंदोलन के बाद से जाट वोटर बीजेपी से नाराज बताए जाते रहे हैं। हालांकि बीजेपी ने जाटों और किसानों को अपने पक्ष में करने के लिए कई कोशिशें भी की हैं। वहीं पश्चिमी यूपी में करीब 27 फीसदी मुस्लिम आबादी है और यादव 7 फीसदी हैं, जिन पर समाजवादी पार्टी बेहतर नतीजे दे सकती है।

सपा-आरएलडी ने 14 सवर्णों को टिकट दिया है, जिसमें सबसे ज्यादा 8 ब्राह्मण हैं। 22 ओबीसी समाज के उम्मीदवार हैं, जिसमें करीब 10 जाट समाज के हैं। दूसरी पार्टियों के मुकाबले गठबंधन ने 10 एससी उम्मीदवार उतारे हैं और 12 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। पश्चिमी यूपी की 27 फीसदी मुस्लिम आबादी को साधने के लिहाज से गठबंधन का 12 उम्मीदवारों को टिकट देना कम लगता है, लेकिन इसके पीछे वजह ये है कि अखिलेश मुस्लिमों की पार्टी वाली छवि से बचना चाहते हैं, क्योंकि चुनावी नैया पार कराने के लिए उन्हें हिंदू वोटों की भी उतनी ही जरूरत है और टिकट बंटवारे में इस बात का खास ख्याल रखा गया है।

सपा-आरएलडी के कई दिग्गज नेताओं की अग्निपरीक्षा पहले चरण में होनी है। चरथावल सीट पर सपा के पंकज मलिक, किठौर सीट पर पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर, सरधना सीट पर अतुल प्रधान मैदान में हैं तो आरएलडी से जेवर सीट पर अवतार भड़ाना, लोनी सीट पर मदन भैया, सिवालखास गुलाम मोहम्मद चुनाव लड़े रहे हैं। गढ़मुक्तेश्वर सीट पर मदन चौहान, मांट सीट पर श्याम सुंदर शर्मा की किस्मत का फैसला होना है। आगरा के फतेहाबाद से भाजपा के विधायक रहे जितेंद्र वर्मा अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। सपा ने उन्हें आगरा का जिलाध्यक्ष बना दिया है। जितेंद्र फतेहाबाद और आगरा की अन्य सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

इसी तरह से मुजफ्फरनगर के बड़े कांग्रेस नेता और चार बार के विधायक रहे हरेंद्र मलिक के बेटे को इस बार चरथावल  सीट से सपा-रालोद गठबंधन ने टिकट दिया है। चुनाव से ठीक पहले पंकज और हरेंद्र दोनों ही कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे। पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक के परिवार ने कई विधानसभा सीटें बदली है। 1985 में हरेंद्र खतौली से विधायक बने। इसके बाद वह 1989 और 1991 में बघरा से चुनाव लड़े और जीते। हरेंद्र के बेटे पंकज मलिक 2007 में बघरा और इसके बाद 2012 में शामली से विधायक बने।

मुजफ्फरनगर सदर सीट पर पूर्व मंत्री चितरंजन स्वरूप के परिवार ने भी ताकत झोंक दी है। पूर्व मंत्री चितरंजन स्वरूप का परिवार पिछले साढ़े पांच दशक से राजनीति में सक्रिय हैं। 1967 में विष्णु स्वरूप विधायक बने थे। 1974 में कांग्रेस के टिकट पर चितरंजन स्वरूप विधानसभा पहुंचे। 2002 और 2012 में सपा के टिकट पर जीते और मंत्री बने। इस बार आरएलडी के टिकट पर चितरंजन के बेटे सौरभ स्वरूप उर्फ बंटी चुनाव मैदान में हैं। वहीं कैराना का चुनाव हुकुम सिंह और मुनव्वर हसन के परिवार की प्रतिष्ठा का सबसे बड़ा सवाल बन गया है। 1974 में हुकुम सिंह कांग्रेस के टिकट पर पहला चुनाव जीते थे। 1977 में जनता पार्टी के बशीर अहमद से हार गए। लेकिन हुकुम सिंह 1980 में जनता एस के टिकट पर फिर जीत गए। अब हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह पिता की विरासत पर अपने समीकरण देख रही हैं।

हालांकि एत्मादपुर में विधायक रहे और सपा के बड़े नेताओं में शुमार डॉक्टर धर्मपाल सिंह अब भाजपा में शामिल हो गए हैं। इस बार भाजपा ने उन्हें एत्मादपुर से टिकट दिया है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों के लिए 7 चरणों में चुनाव होंगे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होगा। इसके बाद 14 फरवरी, 20 फरवरी, 23 फरवरी, 27 फरवरी, 3 मार्च और 7 मार्च को कराया जाएगा। जबकि प्रदेश में मतगणना 10 मार्च को कराई जाएगी।

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