डा. मलय शर्मा व डा. मृदुला शर्मा को मिली अग्रिम जमानत
- सुशीला जसवंत राय मैटरनिटी व जनरल हॉस्पिटल का विवाद
- ट्र्स्ट पर काबिज होने के लिये लंबे समय से चल रहा है विवाद
- 2014 में चेयरपर्सन शीला गुप्ता ने लीज की थी श्रेया मेडि केयर के नाम
- मौजूदा ट्रस्टी अशोक गुप्ता ने उठाये सवाल, कहा इसका अधिकार नहीं
- शीला गुप्ता का कथन..फर्जी हस्ताक्षर कर उन्हें किया गया पद मुक्त
मेरठ के बेहद चर्चित व हाई प्रोफाइल सुशीला जसवंत राय अस्पताल के ट्रस्ट से जुड़े मामले में नया मोड़ आ गया है। इस ट्रस्ट व उसकी संपत्ति पर काबिज होने के लिये पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दो नामी गिरामी चिकित्सकों से जुड़े इस मामले में डा. मलय शर्मा व उनकी पत्नी डा. मृदुला शर्मा को सेशन जज की तरफ से अग्रिम जमानत दे दी गई है। अग्रिम जमानत मिलने पर वर्तमान में सुशीला जसवंत राय के मुख्य भवन पर काबिज अशोक गुप्ता के इस कथन पर भी सवाल खड़े हो गये हैं जिसमें कहा गया है कि सुशीला जसवंत राय मैटरनिटी व जनरल हॉस्पिटल की चेयरपर्सन शीला गुप्ता को लीज डीड व किरायेनामा करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
दरअसल, चेयरपर्सन सुशीला गुप्ता ने 27 अक्टूबर 2014 को एक रजिस्टर्ड डीड मै. श्रेया मेडी केयर सेंटर प्रा लि हक में कर दी थी। इसके डायरेक्टर डा. मृदुला शर्मा, ब्रहम दत्त शर्मा व श्रेया शर्मा हैं। इससे जुड़े विवाद के मुताबिक जसवंत राय चूड़ामणि ट्रस्ट सोसायटी इस अस्पताल का संचालन करती है। वाद में कहा गया है कि वर्तमान में अशोक गुप्ता इसके ट्रस्टी व चेयरमैन है। इससे पूर्व सोसायटी की प्रबंध समिति ने 2 अक्टूबर 2001 को शीला गुप्ता को चेयरपर्सन नियुक्त किया था। इस दौरान 15 दिसम्बर 2019 तक शीला गुप्ता ने ही प्रबंधन व बैंक खाते का संचालन किया। अशोक गुप्ता का कहना है कि 15 दिसम्बर 2019 को ट्रस्ट सोसायटी की प्रबंध समिति ने शीला गुप्ता को पदमुक्त करते हुए राजीव गुप्ता को चेयरमैन नियुक्त कर दिया। शीला गुप्ता ने इस पर यह कहते हुए अपनी आपत्ति दर्ज कराई कि उनके फर्जी हस्ताक्षर से ऐसा किया गया है। इसे लेकर भी वाद चल रहा है।
अशोक गुप्ता का वाद में कहा है कि शीला गुप्ता ने 27 अक्टूबर 2014 में एक डीड मैसर्स श्रेया मेडिकेयर सेंटर के नाम कर दी जबकि उन्हें इसका अधिकार नहीं था। वहीं डा मलय शर्मा व डा मृदुला शर्मा के अधिवक्ता अमित कुमार दीक्षित का कहना है कि 22 नवम्बर 2015 की सभा में बाद में यह जोड़ा गया था कि लीज पर देने से पूर्व तीन न्यासी से अनुमति आवश्यक होगी, जबकि यह डीड 2014 में हो गयी थी। शीला गुप्ता को फर्जी हस्ताक्षर बनाकर उन्हें पदमुक्त किया गया। इसकी रिपोर्ट भी सिविल लाइन थाने में दर्ज है। अशोक गुप्ता के तर्कों के आधार पर शीला गुप्ता की अग्रिम जमानत की याचिका सत्र न्यायालय द्वारा निरस्त कर दी गई थी लेकिन जब यह तथ्य सामने लाया गया तो उच्च न्यायालय ने शीला गुप्ता की अग्रिम जमानत को स्वीकार कर लिया।
इस मामले में यह भी बताया गया कि केस डायरी में अनेक लीस डीड व किरायेनामे लगाए गए हैं जो अकेले ट्रस्टी द्वारा निष्पादित किये गये हैं। यह बात भी निकल कर आई कि जो भी व्यक्ति किसी ट्रस्टी का पक्ष लेता है उसके खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज करा दी जाती है, डा. मलय व अन्य के खिलाफ भी इसी कड़ी में रिपोर्ट दर्ज कराई गई। इतना ही नहीं वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से दबाव बनवा कर ये रिपोर्ट दर्ज कराई गई। सेशन जज रजत सिंह जैन ने अपने आदेश में कहा है कि डा. मृदुला शर्मा व डा. मलय शर्मा के अग्रिम जमानत प्रार्थना पत्र को स्वीकार किया जाता है। प्रत्येक आवेदक द्वारा दो लाख रुपये का बंध पत्र व उतनी ही धनराशि के दो प्रतिभू पत्र संबंधित न्यायालय में दाखिल करने होंगे।