ताजमहल के 22 कक्ष खुलवाने की याचिका खारिज, कोर्ट ने कहा पहले यूनिवर्सिटी जायें और रिसर्च करें
- भाजपा नेता डा रजनीश सिंह ने डाली थी याचिका
- हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने खारिज की याचिका
- याचिकाकर्ता की लगाई कड़ी फटकार
- कहा-पीआईएल का दुरूपयोग न करें, ताजमहल किसने बनाया पहले रिसर्च करें
- यूनिवर्सिटी जाओ, पीएचडी करो, पढ़ाई करो, तब कोर्ट आना
- इतिहास क्या आपके मुताबिक पढ़ाया जायेगा
गर्मी की तपिश को और बढ़ा रही ताजमहल के बंद पड़े 22 कक्षों को खोलने व सर्वे कराने संबधी याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने खारिज कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ता को जमकर फटकार भी लगायी। कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि पीआइएल व्यवस्था का दुरुपयोग न करें। जाकर रिचर्स करो कि ताजमहल किसने बनवाया। किसी यूनिवर्सिटी जाओ, वहां ताजमहल पर पीएचडी करो। उसके बाद कोर्ट आना। अगर कोई ताजमहल पर रिसर्च करने से रोके तक तब हमारे पास आना। उन्होंने कहा कि कल को आप यहां पर आएंगे और कहेंगे कि आपको जजों के चेंबर में जाना है। इतिहास आपके मुताबिक नहीं पढ़ाया जाएगा। कड़ी फटकार के बावजूद याचिका दायर करने वाले भाजपा नेता डा रजनीश सिंह ने कहा कि हम सर्वे के मामले को अब सुप्रीम कोर्ट ले जाएंगे।
आजकल हिंदू मुस्लिम के राजनीतिक माहौल में ताजमहल को भी विवाद के दायरे में लाने की कोशिश की जा रही है। ताजमहल या तेजोमहालय को लेकर रस्साकशी जा रही है और इस कोशिश के बीच ही ताजमहल के 22 कक्षों को खोलने की याचिका ने माहौल में और तपिश बढ़ा दी थी। यह याचिका भाजपा नेता डा. रजनीश सिंह ने दायर की थी।
न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने याचिका पर कहा कि अदालत भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती है। दलीलों के बाद जब पीठ याचिका खारिज करने जा रही थी तो याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से याचिका वापस लेने और बेहतर कानूनी शोध के साथ एक और नई याचिका दायर करने की अनुमति देने का अनुरोध किया, लेकिन पीठ ने उनके अनुरोध को स्वीकार न करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। ऐसा याचिका को पोषणीय न मानते हुए किया गया है। न्यायालय ने कहा कि याचिका में जो मांग की गई है, उन्हें न्यायिक कार्यवाही में तय नहीं किया जा सकता। ताजमहल के संबंध में रिसर्च एक एकेडमिक काम है, न्यायिक कार्यवाही में इसका आदेश नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने साफ कहा कि जनहित याचिका की प्रणाली का दुरुपयोग ना करें। आप अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए किसी विश्वविद्यालय में अपना नामांकन कराएं, यदि कोई विश्वविद्यालय आपको ऐसे विषय पर शोध करने से मना करता है तो हमारे पास आएं।
जस्टिस डीके उपाध्याय ने याचिकाकर्ता से पूछा क्या देश का इतिहास आपके मुताबिक पढ़ा जाएगा। ताजमहल कब बना, इसको किसने किसने बनवाया। जाकर पहले पढ़ो। जस्टिस उपाध्याय ने इस दौरान कोर्ट रूम में सवाल पर सवाल दागे। अब लंच बाद हाईकोर्ट में फिर से इस मामले की सुनवाई होगी।