राबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट हॅास्पिटेलिटी का लाइसेंस आठ साल चली प्रक्रिया के बाद रद्द
हरियाणा सरकार ने स्काई लाइट हास्पिटेलिटी का लाइसेंस रद कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार ने गुरुग्राम के शिकोहपुर में 3.52 एकड़ जमीन पर कामर्शियल कालोनी काटने के लिए यह लाइसेंस दिया था। चकबंदी विभाग के तत्कालीन महानिदेशक डा. अशोक खेमका ने इस जमीन का म्युटेशन (इंतकाल) रद कर दिया था, जिसके बाद यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया। यह कंपनी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पति राबर्ट वाड्रा के पति राबर्ट वाड्रा की है। लाइसेंस रद्द होने के बाद अब एक बार फिर से राजनीतिक उबाल के संकेत मिल रहे हैं।
बता दें कि हरियाणा में भाजपा 2014 में सत्ता में आई थी। तब भाजपा ने हुड्डा सरकार द्वारा दिए गए इस लाइसेंस पर खूब राजनीति करते हुए खूब कांग्रेस की घेराबंदी की थी। करीब आठ साल की लंबी प्रक्रिया के बाद नगर एवं ग्राम आयोजना (टाउन एंड कंट्री प्लानिंग) विभाग ने इस जमीन के लाइसेंस को गलत ठहराते हुए उसे रद करने के आदेश जारी कर दिए हैं। अब इस जमीन पर कोई निर्माण नहीं हो सकेगा। हालांकि इस जमीन का लाइसेंस नवीनीकरण कराने के लिए डीएलएफ ने हरियाणा सरकार के पास आवेदन कर रखा था। आरोप है कि हरियाणा की हुड्डा सरकार ने राबर्ट वाड्रा की कंपनी को यह जमीन काफी सस्ती कीमत पर दी, लेकिन बाद में अधिक कीमत पर इसे डीएलएफ को बेच दिया गया थाय़
पूरे मामले की जांच कराने के लिए हरियाणा सरकार ने जस्टिस एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था। इस आयोग की रिपोर्ट भी काफी दिनों तक सरकार के पास पड़ी रही। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस आयोग के गठन को नियमों के विपरीत बताते हुए अदालत में चुनौती दे रखी है। अदालत ने भी आयोग की रिपोर्ट के सार्वजनिक होने पर अस्थाई रोक लगा रखी है, लेकिन आयोग का गठन सही हुआ या गलत था, इस बारे में अभी अपनी कोई टिप्पणी नहीं दी है।
राबर्ड वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट के लिए इस जमीन की म्युटेशन हो चुकी थी। चार जनवरी 2008 में ओंकारेश्वर प्रापर्टी प्राइवेट लिमिटेड ने सबसे पहले गुरुग्राम के गांव शिकोहपुर में कामर्शियल कॉलोनी के लिए इस जमीन का लाइसेंस लिया था। बाद में यह जमीन वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट को बेच दी गई। स्काई लाइट ने इस जमीन को डीएलएफ को बेच दिया था। तब नए टाइटल के साथ स्क्रूटनी फीस जमा कराते हुए सरकार के पास आवेदन किया गया था। 28 मार्च 2008 को 2.701 एकड़ जमीन का लेटर आफ इंटेंट जारी हुआ। साथ ही 30 दिनों में सभी कंप्लाइंस पूरा करने के लिए कहा गया।
22 अगस्त 2008 में डीएलएफ रिटेल डेवलपमेंट ने कंप्लाइंस जमा कराये। साथ ही स्काई लाइट के साथ कोलाबरेशन एग्रीमेंट भी जमा कराया गया। यानी प्रोजेक्ट पूरा करने की जिम्मेदारी डीएलएफ की हो गई। 20 मई 2012 में इस कालोनी का बिल्डिंग प्लान अप्रूव हो गया, जिसकी समय अवधि मई 2017 तक रही। इस अवधि तक कालोनी का निर्माण हो जाना चाहिए था, लेकिन डीएलएफ चाहता था कि उसका लाइसेंस रिन्यू हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डीएलएफ ने 2011 में नए लाइसेंस के लिए आवेदन किया था, जो अप्रूव हो गया था। 90 दिनों में दस्तावेज जमा कराने थे, लेकिन समय बढ़ाने की मांग की गई।
सेल डीड जमा कराने के बाद लाइसेंस ट्रांसफर कराने के लिए सरकार के पास आवेदन किया गया तो इसकी जांच हुई। तब तत्कालीन डीजी अशोक खेमका ने इस पर आपत्ति की और गड़बड़ी बताते हुए म्यूटेशन रद कर दिया था। लाइसेंस जो रिन्यू हुआ, उस पर भी आपत्तियां लगा दी गई। दलील दी गई कि वेंडर के फेवर में लाइसेंस रिन्यू किया गया है। इसके बाद लगातार प्रशासनिक कार्यवाही चलती रही। अब अगले किसी आदेश तक इस जमीन पर कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकेगा। इस पूरे मामले में अब प्रदेश की सियासत गरमाने के पूरे आसार हैं।