..तो इस कारण हुई पुलिस कप्तान प्रभाकर चौधरी की मेरठ से रूखसती
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..तो इस कारण हुई पुलिस कप्तान प्रभाकर चौधरी की मेरठ से रूखसती

Jun 25, 2022
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  • बेहद सख्त व साफ छवि के अफसर की पहचान बनायी प्रभाकर चौधरी ने
  • भ्रष्ट आचरण पर अधिनस्थों के खिलाफ भी दर्ज करा दिये मुकदमे
  • पहली बार अधिनस्थों ने देखा कैसे काम किया जाता है
  • ट्रैफिक पुलिस की उगाही पर भी काफी हद तक लगी रोक
  • राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने लगाया था थानों में बिना पैसों काम न करने का आरोप
  • रिपोर्ट दर्ज न होने पर दी थी इस्तीफे की धमकी
  • हाशिपुरा जागरण प्रकरण में भी भाजपाइयों को मान सम्मान बचाना हुआ था भारी
  • मेडिकल थाने में पोस्टर प्रकरण में भी सोमेंद्र के करीबी हुए थे गिरफ्तार
  • तबादले से भाजपा व अधीनस्थों ने ली चैन की सांस

मेरठ के पुलिस कप्तान प्रभाकर चौधरी का अंतत तबादला हो ही गया। एक अलग पहचान और बिल्कुल अलग ही कार्यशैली ने बेहद अल्प समय में ही प्रभाकर चौधरी मेरठ की जुबां पर चढ़ गये। तमाम भ्रष्ट अधीनस्थों के खिलाफ मुकदमें दर्ज करा दिये गये, ट्रैफिक पुलिस की उगाही भी बंद हो गयी, सट्टा ,एमसीएक्स पर भी काफी हद तक रोक लगी। बावजूद इसके भाजपा नेताओं व संगठन की नाराजगी अंतत भारी पड़ी और प्रभाकर चौधरी को आगरा स्थानान्तरित कर दिया गया। प्रभाकर चौधरी के स्थानान्तरण से जहां भाजपा नेताओं ने राहत की सांस ली है वहीं महकमे को भी आज चैन की नींद आने जा रही है।

प्रभाकर चौधरी ने मेरठ पुलिस की कमान संभालते ही घोषणा कर दी थी कि यदि कोई भ्रष्ट आचरण पकड़ा गया तो फिर फरियाद का भी मौका नहीं मिलेगा। ऐसा हुआ भी। मलाईदार थानों में अर्से से जमे हुए कई थानेदार पूर्व में स्थानान्तरित जिले से बाहर थानों में चले गये। बाहरी जनपदों में जाना ही उन्होंने अपनी भलाई समझी। कई अधीनस्थों के खिलाफ मुकदमें भी दर्ज हुए। यह विभागीय मामला था लेकिन इससे इतर अब बात करते हैं प्रभाकर चौधरी के तबादले के कुछ कारणों की। आपको याद होगा हाल ही में राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने मारपीट के एक मामले में रिपोर्ट दर्ज न होने पर यह आरोप लगाते हुए प्रदेश सरकार के साथ ही जिले की पुलिस पर यह आरोप लगा दिया था कि यहां बिना पैसे कोई काम नहीं होता है। दरअसल, राज्यमंत्री के कहने के बावजूद गंगानगर थाना प्रभारी ने लूट की रिपोर्ट दर्ज करने से इनकार कर दिया था। थानेदार का साफ कहना था कि जब मारपीट की घटना में लूट हुई ही नहीं तो फिर यह धारा कैसे दर्ज की जाये। इस पर दिनेश खटीक ने डीएम व एसएसपी प्रभाकर से मुलाकात की थी। कोई तव्ज्जो न मिलने पर दिनेश खटीक ने इस्तीफा देने तक की घोषणा कर दी थी।

सूत्रों का कहना है कि इस्तीफे के लिये बकायदा प्रेस वार्ता की जानी थी लेकिन सांसद राजेंद्र अग्रवाल के हस्तक्षेप के बाद रिपोर्ट दर्ज हो गयी। यहां भी पुलिस ने साथ ही क्रास रिपोर्ट भी दर्ज कराते हुए राज्यमंत्री दिनेश खटीक को आइना दिखा दिया। राज्यमंत्री द्वारा थानों में भ्रष्टाचार के खुले आरोप की गूंज लखनऊ के पंचम तल तक सुनाई दी। उम्मीद से इतर प्रदेश के दोनों उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक ने दिनेश खटीक के घर पहुंच कर यह संदेश दे दिया कि पार्टी व संगठन उनके साथ है। पंकज सिंह ने भी यही काम किया।

इससे पूर्व हाशिमपुरा में देवी जागरण की भाजपाई जिद ने भी संगठन को मुंह की खानी पड़ी थी। सिविल लाइन थाना प्रभारी ने साफ कह दिया था कि रामजान माह में कोई नयी परम्परा शुरू नहीं करने दी जायेगी। कमल दत्त शर्मा के साथ दीपक शर्मा और थाना प्रभारी आमने सामने आ गये थे। यहां कमल दत्त शर्मा और संगठन को बैक फुट पर आकर किसी तरह अपनी इज्जत बचानी पड़ी थी। इसके अलावा हाल ही में मेडिकल कालेज में पोस्टर लगाने का मामला भी खासा सुर्खी में रहा। यहां राज्यमंत्री सोमेंद्र तोमर के करीबियों ने थाने के बाहर यह पोस्टर ल लगा दिया था कि यहां भाजपा कार्यकर्ताओं का आना मना है..आज्ञा से थाना प्रभारी। पुलिस की छिछालेदर हुई तो सोमेंद्र तोमर के कई करीबियों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे डाल दिया गया। हां, इतना जरूर हुआ कि इन सभी आरोपियों को उसी दिन शाम को जमानत पर रिहा कर दिया गया। हालांकि पुलिस ने तमाम कोशिश की थी कि ये सभी जेल की हवा जरूर खायें।

इसके अलावा विधानसभा चुनाव के दौरान सरधना में भी भाजपा व पुलिस में टकराव साफ नजर आया था। सूत्रों का कहना है कि पुलिस कप्तान प्रभाकर चौधरी के साथ ही एसपी देहात केशव कुमार से भी राज्यमंत्री दिनेश खटीक व संगीत सोम के अच्छे तालुकात नहीं हैं। प्रभाकर चौधरी के बाद अब सभी की निगाह एसपी देहात केशव कुमार पर लगी हुई हैं। इसके अलावा रेलवे रोड, लिसाड़ी गेट, नौचंदी, टीपीनगर, ब्रहमपुरी, सिविल लाइन थाना प्रभारी भी भाजपाइयों को समय समय पर ऐसा कुछ कर चुके हैं जिसमें कार्यकर्ताओं को अपनी इज्जत बचाना भारी पड़ती नजर आई है। कई मर्तबा मान सम्मान की बात भी कही गयी। हाशिमपुरा जागरण प्रकरण में भी बीच का सम्मानजनक रास्ता निकालने की बात कही गई थी लेकिन यहां भी भाजपाइयों को बैक फुट पर आना पड़ा था।

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