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ज्ञानवापी मामले में सुनवाई पूरी, कल दोपहर 2 बजे आयेगा फैसला

May 23, 2022
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ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले पर दोनों तरफ की दलील वाराणसी जिला कोर्ट में सुनी गई। दोनों पक्षों को सुनने के बाद जिला कोर्ट ने अपना फैसला कल दोपहर दो बजे तक के लिये सुरक्षित रख लिया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला वाराणसी कोर्ट को स्थानान्तरित कर दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आठ सप्ताह में सुनवाई पूरी करने के भी निर्देश दिये हैं।

बताया जा रहा है कि जिला अदालत ने अपना आदेश इस आधार पर सुरक्षित रखा है कि इस विवाद की आगे सुनवाई की प्रक्रिया क्या हो। दरअसल, वादी पक्ष ने जिला जज कोर्ट से यह मांग की है कि सर्वे के दौरान संग्रहित साक्ष्यों को कोर्ट पहले देख ले फिर आगे की सुनवाई करें वहीं प्रतिवादी मुस्लिम पक्ष मुकदमे की पोषणीयता पर ही सुनवाई कराना चाहती थी। जिस पर कोर्ट ने कल की तारीख सुनवाई के लिए तय कर दी है। मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता अभय नाथ यादव ने दीन मोहम्मद के 1936 के केस का हवाल देते हुए कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में लंबे समय से नमाज पढ़ी जा रही है इसलिए वह मस्जिद है और उच्च न्यायालय ने भी मुस्लिम पक्ष में फैसला दिया था।

सुनवाई से पहले पूर्व कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा को कोर्ट रूम में जाने से रोक दिया गया। दरअसल, कोर्ट रूम में आज सिर्फ 23 लोगों को ही जाने की इजाजत थी। इस लिस्ट में अजय मिश्रा का नाम नहीं था। जिला जज डॉक्टर अजय कुमार विश्वेश ने निर्देश दिया था कि आज ज्ञानवापी मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में केवल केस से संबंधित वकील ही मौजूद रहेंगे। इस वजह से कोर्ट रूम में कुल 23 ही लोग मौजूद रहे।

हिंदू पक्ष
1. श्रृंगार गौरी की रोजाना पूजा की मांग
2. वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की पूजा की मांग
3. नंदी के उत्तर में मौजूद दीवार को तोड़कर मलबा हटाने की मांग
4. शिवलिंग की लंबाई, चौड़ाई जानने के लिए सर्वे की मांग
5. वजूखाने का वैकल्पिक इंतजाम करने की मांग

मुस्लिम पक्ष
1. वजूखाने को सील करने का विरोध
2. 1991 एक्ट के तहत ज्ञानवापी सर्वे और केस पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका

वाराणसी कोर्ट की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने नयी याचिका दायर की है। उनका कहना है कि वर्शिप एक्ट काशी विश्वनाथ मंदिर पर लागू नहीं होता है। ज्ञानवापी मस्जिद इस्लाम के सिद्धांत के हिसाब से नहीं बनी है। याचिका में अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि ये ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी की उपासना पूजा का मामला सीधे तौर पर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा है। उस अविमुक्त क्षेत्र में अनादि काल से भगवान आदि विशेश्वर की पूजा होती रही है। ये क्षेत्र और यहां की समस्त सम्पत्ति हमेशा से उनकी ही रही है। उनका तर्क है कि एक बार प्राण प्रतिष्ठा हो जाने के बाद, मन्दिर को ध्वस्त करने और यहां तक कि नमाज पढ़ने से भी मन्दिर का धार्मिक स्वरूप नहीं बदलता. प्राणप्रतिष्ठा के बाद देवता का उस प्रतिमा से अलगाव तभी होता है जब विसर्जन की प्रकिया के बाद मूर्तियों को वहां से शिफ्ट न किया जाए। इस्लाम के उसूलों के मुताबिक मन्दिर तोड़कर बनाई गई मस्जिद को अल्लाह का घर नहीं माना जा सकता। वहां अदा की गई नमाज़ खुदा को कबूल नहीं है।

उधर, उपासना स्थल कानून 1991 भी किसी धार्मिक स्थल के स्वरूप और प्रकृति को निर्धारित करने से नहीं रोकता। लिहाजा अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी की याचिका पर आज सुनवाई की जरूरत नहीं है। इस याचिका को खारिज किया जाए।

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