संतोष की गुमनाम मौतः हाईकोर्ट की सख्ती के बाद मेरठ मेडिकल कॉलेज में हुई कार्रवाई, दो डॉक्टर और मेटर्न को हटाया
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संतोष की गुमनाम मौतः हाईकोर्ट की सख्ती के बाद मेरठ मेडिकल कॉलेज में हुई कार्रवाई, दो डॉक्टर और मेटर्न को हटाया

May 21, 2021
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-मेडिकल कालेज से मरीज गायब हो जाता है किसी को पता नहीं

-भर्ती के अगले दिन मौत हो गयी थी लेकिन अज्ञात में करा दिया संस्कार 

-शुरू में दोषियों पर हल्की कार्यवाही कर प्राचार्य ने औपचारिकता निभा दी थी

-हाईकोर्ट ने स्वत संज्ञान लिया और दिये कठोर कार्यवाही के आदेश

मेरठ।  लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज में कोरोना संक्रमित संतोष कुमार की मौत 15 दिन तक छिपाने के मामले में लंबे इंतजार के बाद अब कार्रवाई हुई है। कोविड वार्ड प्रभारी और मेटर्न को हटा दिया गया है जबकि संविदा जूनियर डॉक्टर की सेवाएं समाप्त कर दी हैं। पूरे मामले में महानिदेशक (स्वास्थ्य) ने अपर मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) को रिपोर्ट सौंप दी है।

मेडिकल प्राचार्य डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने बताया कि डॉ. सुधीर राठी कोविड-19 वार्ड प्रभारी और सर्जरी विभाग के अध्यक्ष थे। उन्हें दोनों विभागों से कार्यमुक्त कर दिया गया है। सर्जरी विभाग के आचार्य डॉ.धीरज राज को इसी विभाग का अध्यक्ष और कोविड-19 वार्ड प्रभारी बनाया है। डॉ. धीरज अभी तक डॉ. राठी के साथ ही कोविड वार्ड में सेवाएं दे रहे थे। कोविड वार्ड में कार्यरत संविदा जूनियर डॉक्टर तनिश उत्कर्ष की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। जिस दिन मरीज संतोष कुमार एडमिट हुए, उस वक्त ड्यूटी पर डॉ. उत्कर्ष मौजूद थे। जबकि मेटर्न अनीता प्रकाश को कोविड वार्ड से हटाकर सीएमएस कार्यालय से सम्बद्ध कर दिया है।

दरअसल, बरेली के 64 वर्षीय संतोष कुमार को 21 अप्रैल को मेरठ मेडिकल के कोविड वार्ड में भर्ती कराया गया था।  अगले ही दिन उनकी बाथरूम में मौत हो गई। 23 अप्रैल को डॉक्टर-कर्मचारियों ने अज्ञात में शव का अंतिम संस्कार कर दिया। इतना ही नहीं चिकित्सक संतोष की बेटी को बराबर उनके पिता की कुशलता देते रहे। एक हफ्ते तक ये सिलसिला बराबर चलता रहा।  बाद में खुलासा हुआ तो बेटी ने वीडियो वायरल कर सीएम योगी से उसके पिता को तलाश कराने की गुहार लगाई, जिस पर प्रशासन हरकत में आया था।

प्राचार्य ने इस केस की जांच कराई। तीन सदस्यीय कमेटी ने इस केस में आठ डॉक्टर व कर्मचारियों को दोषी माना। प्राचार्य ने सभी की वेतनवृद्धि रोक दी। हाईकोर्ट इलाहाबाद ने केस का स्वत: संज्ञान लिया और सिर्फ वेतनवृद्धि पर आश्चर्य जताते हुए अपर मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) को एक हफ्ते में कठोर कार्रवाई का आदेश दिया। इस पर बाध्य होकर प्राचार्य को यह कार्रवाई करनी पड़ी।

 

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